Saturday, 17 July 2010
अक्ल हमको मगर आती नहीं...
कल देश में दो बड़ी खबरें थी...दोनों को देख कर 'देजा वू' का एहसास हो रहा था... एक तरफ एक सुदर्शन और चबा- चबा कर बोलने वाला एक पाकिस्तानी विदेश मंत्री हमारी कूटनीति, राजनीति और पता-पता नहीं क्या-क्या और..की बधिया उधेड़ रहा था...वहीँ दूसरी और हमारे एक खबरिया चैनल के दफ्तर में कुछ लोग हंगामा बरपा रहे थे... इन दोनों खबरों को देख कर कोई आश्चर्य का भाव नहीं बन रहा था... ऐसा पहले भी हो चुका है...एक नहीं कई बार हो चुका है... और फिलहाल तो यही लगता है की ऐसा और कई बार होता रहेगा...हाँ चिढ और कोफ़्त ज़रूर हो रही थी...
चिढ इस बात की कि सबसे बड़े वैचारिक देश (भारत में सबके पास एक अपनी खालिस पर्सनल विचारधारा है) में जो बोल रहा है वो लातों से पिटा है... और जो नहीं बोल रहा वो बातो से...कोफ़्त इस बात कि है कि इसके बाद फिर यही होगा... ऐसे ही कुछ विचारधारा के ठेकेदार फिर किसी दफ्तर को फोड़ेंगे... और एक देश बार-बार हमें ज़ख्म देगा और हम बार-बार उसके बात का ढोल पीटने जाएँगे...
खैर कोफ़्त और चिढ को मारिये गोली और असल मुद्दे पर आइये... जर्मनी पौल बाबा को नहीं बेचेगा... इस पर क्या कहते हैं आप... आखिर आपकी कोई तो राय होगी... है तो हमें एसएम्एस करिए...भारत बड़ा वैचारिक देश है...
Sunday, 11 July 2010
नए सितारों का कप
उरुग्वे के लिए फिर ३-२ का स्कोर अनलकी साबित हुआ.... कमाल के मैच में हार कर चौथे नंबर पर रही... पॉलबाबा फिर सही रहे.... अब शायद जर्मनी वाले उसकी जान बख्श दें... अगर कल स्पेन जीता तो इस अष्टपाद को गोल्डन बूट ही न मिल जाये... आखिर इस विश्व कप में सबसे सही गोल (मेरा मतलब भविष्यवाणियाँ) तो उसी ने मारे हैं...
खैर कुल मिलकर मज़ा आया... इस कप ने कई नए हीरो दिए हैं... काका, मेसी से निराश लोगों को मुलर, फोर्लन जैसों ने खूब लुभाया... जर्मनी के मुलर गजब की खोज हैं... क्लोसे और बलाक के जाने के बाद भी टीम का फ्यूचर ब्राईट है... जिस तरह से मुलर खेलते हैं, उन्हें क्लब और नेशनल फुटबाल में रोकना मुश्किल होगा... लेकिन जिस खिलाडी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वे रहे फोर्लन... फिलहाल फ्री-किक और कोर्नर पर वे सबसे बेहतरीन हैं... बेशक वे बेकहम, कार्लोस या रोनाल्डिनो नहीं है लेकिन उनका निशाना सटीक है...और ताकत जोरदार... अब उन्हें दुनिया भर के लोग पहचान गए हैं... आगे भी देखने को मिलेगा उनका जलवा...इन दोनों के अलावा घाना के ज्ञान, जर्मनी के ओजील जैसे खिलाडी भी याद रहेंगे...
इन नए पट्ठों के बीच कुछ पुराने शेर भी चमके... क्लोसे गज़ब के खिलाडी हैं... विश्वकप में आते ही वे अलग स्तर पर खेलते हैं.... डेविड विला अकेले सेमीफाईनल तक ले आये... स्नाईडर और रोबेन भी अच्छा खेल रहे हैं...
फाईनल में जो भी जीते.... विजेता पहले ही घोषित हो चूका है... फैन्स जीत गए हैं... शायद पॉल और अन्धविश्वास भी... खुला खेल है...
Friday, 9 July 2010
कुछ अनछपी कवितायेँ....
कुछ अनछपी कवितायेँ...
पन्नों के मुड़े हुए कोरों के बीच से झांकते हैं कुछ शब्द
जैसे पर्दों के पीछे से देखती हैं बिन ब्याही लड़कियां
न छपने वाली कवितायेँ
मुस्कुराती रहती हैं लाल-लाल
पीले पड़ते पन्नों पर
गुनगुनाती रहती हैं बर्मन की कोई धुन
अपने मांझी की याद में
कभी उनमे से निकल कर कोई
बन जाती है किसी का प्रेम गीत
तब ये कवितायेँ
सुल्झातीं हैं अपनी लटें
इतराती हैं
आँखों से मुस्कुराती हैं ...
कुछ कवितायेँ कभी नहीं छपतीं
और याद रह जाती हैं..